"रोके तुझको अँधियां, पाएगा तू पायेगा जो लक्ष्य है तेरा|" जब भी मैं यह गीत सुनता हूं मेरा मन आशा और प्रोत्साहन से भर जाता है| लेकिन ऐसा क्यों है की मन में आशा होते हुए भी हम रोज हताशा का सामना करते हैं? आइए जानें|

 "रोके तुझको अँधियां, पाएगा तू पायेगा जो लक्ष्य है तेरा|" जब भी मैं यह गीत सुनता हूं मेरा मन आशा और प्रोत्साहन से भर जाता है| लेकिन ऐसा क्यों है की मन में आशा होते हुए भी हम रोज हताशा का सामना करते हैं? आइए जानें| 



1. हम अपने लक्ष्यों का निर्धारण दूसरों के लक्ष्यों को देखकर करते हैं| ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा कि हम अपने अंदर सिर्फ कमजोरियां देखते हैं और अपनी strength यानी शक्तियों को नजरअंदाज करते हैं| जब भी आप कुछ नया शुरू करें अपने लक्ष्य का निर्धारण अपनी strengths के अनुसार करें| 

2. छोटे कदम लेना सीखें| इससे आप कभी भी हीन भावना का शिकार नहीं होंगे | पहाड़ जैसे लक्ष्य आपके मन में हीन भावना और घबराहट को जन्म देते हैं जिससे आप पहला कदम ही नहीं ले पाते हैं| अपने लक्ष्य पर कार्य करते समय यह ध्यान रखें कि आपका competition बीते हुए कल से है और किसी से नहीं है|

3. कई बार हम जान ही नहीं पाते हैं कि हम जीवन में क्या करना चाहते हैं| समय के साथ हमारा रुचि परिवर्तन होता है जिसके कारण हम तनाव का सामना करते हैं| ऐसे क्षणों में लाइफ कोच (Life Coach ) परफॉर्मेंस कोच (Performance Coach ), या आत्मविश्वास कोच (Confidence Coach ) से सलाह लेना कारगर होता है| याद रखें तनाव हमारे जीवन का हिस्सा है लेकिन हमारा जीवन नहीं बनना चाहिए| 

4. अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते समय आपको कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा| आपका मानसिक संतुलन चाहे जितना अच्छा क्यों ना हो निराशावादी विचारों के आने की पूरी संभावना है| यदि ऐसा होता है अपने तन और मन दोनों को विश्राम देना सीखे| खुद से बार-बार यह कहें मुझसे मेरा लक्ष्य है, मैं रहूंगा तभी मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाऊंगा या पाऊँगी| 

5. अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय यदि आप अत्याधिक चिंता महसूस करें या आप की कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ने लगे, मानसिक चिकित्सा लेने से पीछे ना हटे| यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारे देश में मानसिक चिकित्सा लेने वाले लोगों को हीन भावना से देखा जाता है या कमजोर कहा जाता है|

वास्तविकता यह है जो व्यक्ति मनोचिकित्सा की तरफ कदम बढ़ाएगा वही अपने आने वाले कल को सँवार पाएगा और अपने लक्ष्य के बोए फलों की मिठास अनुभव कर पाएगा| 

अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते हुए खुद को अर्द्ध विराम देना सीखें तभी आप अपने लक्ष्य को पूर्ण विराम देना सीख पाएंगे| अपने मन की अच्छाइयों को पहचाने और अगर मन  बुरी बातें कहने लगे या आप डिप्रेशन महसूस करें तो चिकित्सा लेने से पीछे ना हटें |

क्या आप रोज अपने लक्ष्यों की तरफ कदम बढा रहे हैं? लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में जब आप विचलित महसूस करते हैं, उन नकरात्मत्क विचारों से आप कैसे राहत पाते हैं?

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PS: इस पोस्ट में करूँगा या करुँगी केवल प्रतीकात्मक बिंदु हैं और किसी भी gender के लिए भेदभाव करने की मंशा से नहीं लिखे गए हैं  |

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